दिल्ली की गलियों में ढूँढने निकलो तो अक्सर ख़ाक के साथ कुछ अपना भी मिल जाता है, शायद दिल्ली में सच दिलवालों का दिल बसता है;
आज इन आम मोड़ों पे मैंने छोटी छोटी कहानियां पढ़ी हैं, कुछ भूले से, पर अपने से गीत और कुछ हमेशा साथ रह जाने वाली यादें, समेट के रखूं तो कुछ तसवीरें...
आज इन आम मोड़ों पे मैंने छोटी छोटी कहानियां पढ़ी हैं, कुछ भूले से, पर अपने से गीत और कुछ हमेशा साथ रह जाने वाली यादें, समेट के रखूं तो कुछ तसवीरें...
कभी फुर्सत के दिन, एक बार फिर हम आप मिलेंगे; कुछ किस्से तुम सुनाना, दिल्ली की एक कहानी हम भी सुनायेंगे;
कहने को यहाँ कभी निजाम, कभी ग़ालिब रहा करते थे, यूँही राह चलते, उन्ही के कुछ मुकाम आज भी मिलते हैं, सम्भाल के रखूं तो कुछ यादें ...
दिल्ली शायद आज भी सोचती होगी.. कब पुरानी से नयी बन गयी. आज हर दिन कि एक नयी कहानी है, फिर भी यह वही पुरानी सी है;
दिल्ली शायद आज भी सोचती होगी.. कब पुरानी से नयी बन गयी. आज हर दिन कि एक नयी कहानी है, फिर भी यह वही पुरानी सी है;
कभी तुम्हारी कभी हमारी सी, और दिल्ली एक खुली किताब सी.
इन्ही पन्नो को पलट के देखो तो शायद खुद को या ख़ुदा को या ख़ुदी के लिखे चंद शेर मिल जाएंगे....संजो के रखो तो एक ग़ज़ल...नुमाइश पे रखूं तो एक ज़िन्दगी...
कभी जौक कि दिल्ली थी, मस्जिद मक्बरें थे, है वही आज भी - दीवारों पे लिखी कुछ कही अनकही बातें...बूझूं तो पहेली...इस मनन को भटका के रखूं तो दिल्ली कि गलियां...
कुछ समय साथ थी, कुछ पल शायद और भी हो.. यहाँ आषाढ़ का एक दिन था, सवेरा था, सांझ शायद यहाँ की ना हो..., हर दिल कि तरह एक दिल यहाँ भी रह जायेगा, साथ रखूँ तो एक ख़याल ...
(Click here (ChaoticOrder: Ek mazaar yeh bhi) for something found by the road that leads home, every day.)
Now, I wish I had written the post above. However, the only credit I can take for this, is a little 'me too'. What started out as few lines written by a friend for the Shahjahanabad post, some exchanges later took a shape and form of its own.
So by invitation, and collaboration hence - Invibration :). Will let that be the Kaka quirk for the day :P
So by invitation, and collaboration hence - Invibration :). Will let that be the Kaka quirk for the day :P
Greetings and love,
ReviewKaka
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